नई दिल्ली, Reporter" alt="" aria-hidden="true" />
। दुनिया में कोरोनावायरस के बढ़ते संक्रमण को देखते हुए मिस इंग्लैंड रह चुकी भारत की बेटी भाषा मुखर्जी ने अपने क्राउन को साइड में रख एक बार फिर डॉक्टर के रूप में काम करने का फैसला किया है। भाषा मुखर्जी मिस इंग्लैंड बनने से पहले बोस्टन के एक अस्पताल में जूनियर डॉक्टर थीं। डर्बी की रहने वाली 23 वर्षीय भाषा के पास स्नातक की दो दो डिग्री हैं।
नॉटिंघम यूनिवर्सिटी से मेडिकल साइंस के साथ उन्होंने मेडिसिन और सर्जरी में भी स्नातक किया है। वह पांच भाषाएं, हिन्दी, अंग्रेजी, बांग्ला, जर्मन और फ्रेंच बोल सकती हैं। भारत में जन्मीं भाषा नौ साल की उम्र में अपने माता-पिता के साथ इंग्लैंड पहुंच गई थीं और उसके बाद उनका परिवार वहीं सेटल हो गया था। कोरोनावायरस से इस जंग में सभी लोग एक साथ काम कर रहे हैं।
सीएनएन की रिपोर्ट के मुताबिक, कोलकाता में जन्म लेने वाली भाषा मुखर्जी पिछले साल मिस इंग्लैंड बनी थीं। हालांकि, ताज जीतने के बाद वह कई सारे चैरिटी से जुड़े कार्यों की एंबेस्डर के रूप में काम कर रही हैं और इस वजह से उन्हें विश्वभर में कई जगहों पर घूमना पड़ता है हालांकि, वक्त की नजाकत को देखते हुए वह लोगों की मदद के लिए आगे आई हैं और एक बार फिर डॉक्टर बन लोगों की सेवा कर रही हैं।
डॉक्टर भाषा मुखर्जी ने जिस रात उत्तरी-पूर्वी इंग्लैंड के न्यूकासल अपॉन टाइन में Miss England (मिस इंग्लैंड) का खिताब जीता। इसके कुछ घंटे बाद शुक्रवार को ही उन्होंने लिंकनशायर, बॉस्टन के पिलग्रिम अस्पताल में डॉक्टर की नौकरी शुरू की, जो पहले से ही तय था।भाषा मुखर्जी ने प्रतियोगिता में शामिल दर्जनों प्रतियोगियों को पछाड़कर ताज अपने नाम किया है। प्रतियोगिता को जीतने में उनका ऊंचा आईक्यू स्तर काफी मददगार साबित हुआ। इस जीनियस सुंदरी का आइक्यू 146 है। वहीं मशहूर वैज्ञानिक आइंस्टीन का आईक्यू लेवल 160 था।
मिस इंग्लैंड के आखिरी चरण से पहले एक साक्षात्कार में उन्होंने कहा था, 'कई लोग सोचते हैं कि सौंदर्य प्रतियोगिताएं जीतने वाली लड़कियां बुद्धू होती हैं। लेकिन हम सब किसी ना किसी मकसद से ही यहां हैं। मेडिकल की पढ़ाई के बीच मैंने इस तरह की प्रतियोगिता में हिस्सा लेने के बारे में सोचा। इसके लिए मुझे खुद को बहुत समझाना भी पड़ा था।' स्कूल के दिनों को याद करते हुए उन्होंने कहा कि वह सीखने के लिए हमेशा उत्साहित रहती थीं इसलिए अपने शिक्षकों की चहेती थीं। क्लास में सबसे होशियार होने के लिए उन्हें आइंस्टीन अवार्ड भी मिला था। वह एक सामाजिक संस्था भी चलाती हैं। 2017 में उन्होंने जेनेरेशन ब्रिज प्रोजेक्ट शुरू किया था जो अकेलेपन से जूझ रहे बुजुर्गो की मदद करता है।